क्रिकेट विश्व कप चल रहा है। क्रिकेट के पुराने संस्मरणों से तो एक नई ऊर्जा
मिलती है, पर आज इस खेल के प्रति वह लगाव नहीं रहा
जो जीवन को नवजीवन के अनुभव से भर दिया करता था। अति क्रिकेट, आईपीएल, मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी आदि बुराइयों में तो क्रिकेट
पहले ही फंसा हुआ था, अवैध धन के लेन-देन को ठिकाने लगाने के माध्यम के रूप में भी क्रिकेट कलंकित
हो गया।
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय भारतीय
क्रिकेट नियन्त्रण बोर्ड के अध्यक्ष श्रीनिवासन तथा भारतीय क्रिकेट टीम के महत्वपूर्ण
खिलाड़ियों को आईपीएल की सट्टेबाजी में दोषारोपित कर चुका है। न्यायालय का इस सन्दर्भ
में जो भी निर्णय रहा हो लेकिन बीसीसीआई और संदिग्ध क्रिकेट खिलाड़ियों पर क्रिकेट
मैच फिक्सिंग के लिए लगे आरोपों ने एक प्रकार से इस खेल के प्रति उदासीनता ही बढ़ाई
है।
क्रिकेट को भारत में सबसे ज्यादा पसंद
किया जाता है। प्रशंसक क्रिकेट खेल से मिलनेवाले मनोरंजन व आनंद का लोभ संवरण नहीं
कर पाते। इस खेल के सामाजिक तथा व्यापारिक मूल्य की गणना करना असम्भव है। समाज
के अधिकांश लोगों को जो अच्छा लगता है, व्यापार के दिग्दर्शन में वह मूल्यवान हो जाया करता है। क्रिकेट के साथ भी
दुनिया और खासकर भारत में यही हुआ।
आधिकारिक रूप से हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी है परन्तु सामाजिक व व्यावसायिक
रूप से क्रिकेट अधिक स्वीकार्य है। बीसीसीआई दुनिया का सबसे अधिक धनवान बोर्ड है।
फलस्वरूप भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी भी अधिक मान-सम्मान पा रहे हैं और पाते रहेंगे।
किशोर वय के लड़कों में क्रिकेट का मोह क्रिकेट सम्बन्धी समस्याओं के
पूर्वाग्रह के बिना ही होता व बढ़ता है। उनकी जिज्ञासाएं क्रिकेट देखने और उससे
प्रभावित होने तक ही सीमित नहीं होतीं। वे क्रिकेट के विशाल तथा बहुआयामी क्षेत्र
में अपना जीवन भी संवारना चाहते हैं। आज के किशोरों के पास क्रिकेट को मात्र खेल
के रूप में देखने की विवशता नहीं है। यदि वे इस खेल की अच्छी समझ रखते हुए इसे
ढंग से खेलना जानते हैं, तो वे इसमें रोजगार की सम्भावनाएं भी ढूंढते हैं।
उपभोक्ता उत्पाद बनानेवाली कंपनियां, खेल का सामान बनानेवाली कंपनियां, मीडिया, विज्ञापन एजेंसियां और कई कॉर्पोरेट
कंपनियों ने इसी क्रिकेट के बूते पिछले चार दशकों में न जाने कितने रुपयों का
लेन-देन किया है। यह लेन-देन प्रत्यक्ष रूप से वैध लगता हो, पर अप्रत्यक्ष रूप से यह अधिसंख्य अवैध मुद्रा को
प्रबन्धित करने का एक उपाय है।
जिनको क्रिकेट खेल और इसकी थोड़ी सी भी जानकारी नहीं है, वे लोग भी इस खेल के प्रचार से अत्यधिक धनार्जन कर चुके
हैं और कर रहे हैं। इससे बड़ी विसंगति इस खेल के साथ और क्या हो सकती है! आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो यह बताता है कि क्रिकेट गलत
धन के प्रचार-प्रसार का कितना बड़ा माध्यम बना हुआ है!
एक ओर राजधानी में सस्ती बिजली व पानी के लिए नई सरकार का मंत्रिमण्डलीय अभ्यास
जारी है, तो दूसरी ओर प्रधानमन्त्री कहते हैं कि
जो राज्य विद्युत उत्पादन नहीं कर सकता वह सस्ती विद्युत उपलब्ध कराने की बात
कैसे कर सकता है। इन दोनों पक्षों ने क्या कभी यह विचार किया है कि क्रिकेट के
कितने ही दिन-रात के मैचों में कितनी वाट बिजली फुकती (बर्बाद) होती है! यदि एक महीने चलनेवाले आईपीएल के दिन-रात के मैचों में
बर्बाद होनेवाली बिजली बचाई जाए, तो जनता को सस्ते मूल्य पर निर्बाध विद्युतापूर्ति की जा सकती है।
क्रिकेट के मैच अगर दिन-रात के करने भी हैं, तो इसके लिए सभी क्रिकेट स्टेडियमों में सौर ऊर्जा के विकल्प स्थापित किए
जाएं। सौर ऊर्जा उपलब्ध कराने से लेकर उसके रख-रखाव तक का उत्तरदायित्व
बीसीसीआई या क्रिकेट के प्रत्यक्ष लाभ से जुड़ी संस्थाओं का हो।
विद्युत उत्पादन के लिए पहाड़ी नदियों पर बांध बनाने के भयावह दुष्परिणाम हम
सब प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देख ही रहे हैं। दिन-रात के क्रिकेट या किसी अन्य
खेल के लिए बिजली बर्बाद करना और राजधानी की जनता को समुचित मूल्य पर बिजली उपलब्ध
नहीं करा सकने की विवशता दर्शाना, सरकारों की अदूरदर्शिता का ही परिचायक है। सशक्त बनने के स्वप्न देखते
राष्ट्र की राजधानी अगर इस सदी में भी बिजली-पानी के लिए तरस रही हो, तो इससे बड़ा राष्ट्रीय लज्जा का विषय दूसरा क्या हो
सकता है, चाहे क्रिकेट वर्ल्ड कप के बहाने ही
सही।
विकेश कुमार बडोला