जैसे-जैसे
भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतवर्ष में अपना लोकतांत्रिक
विस्तार कर रही है, उतनी तीव्रता से कांग्रेसजनित मीडिया का मोदी विरोधी दुष्प्रचार
पांव पसार रहा है। इस हड़बड़ाहट में तथाकथित पत्रकार, बुद्धिजीवी और विभिन्न
क्षेत्रों की जानकारी रखनेवाले विशेषज्ञ यह भी भूल चुके हैं कि कृत्रिम विद्वता
ओढ़कर लोगों को अपनी मनपसंद सरकार या राजनीतिक दल के अनुसार बातों, चर्चाओं व
भाषणों से मूर्ख बनाए रखने का जमाना गया।
पिछले बीस वर्षों
में मध्यम वर्गीय भारतीय लोगों की जो पीढ़ी तैयार हुई वह केवल कहे-सुने पर विश्वास
करने की स्थिति में बिलकुल नहीं है। उसकी आदत है कि वह हर बात व चीज को अपने स्तर
पर नाप-तौल और ठोक-बजा कर स्वीकार करती है। इसलिए कांग्रेस रूपी राजनीतिक दल के
उकसावे में क्षेत्रीय राजनीतिक दल और इन सभी के अवैध धंधों की कमाई से उपजे
पत्रकारिता संस्थानों को अब इस भ्रांति में बिलकुल नहीं रहना चाहिए कि लोगों को
मोदी के विरोध में असत्य भाषण करके दुष्प्रेरित किया जा सकता है। लोग कम से कम
इस देश के दो प्रमुख राजनीतिक दलों तथा उनकी कार्यप्रणालियों को तो ढंग से पहचान
ही गए हैं। इतना ही नहीं उन्हें क्षेत्रीय दलों के राजनीतिक स्तर का भी भलीभांति
ज्ञान हो चुका है। इसलिए उनके लिए संवैधानिक रूप से भाजपा के अतिरिक्त कोई दूसरा
बेहतर राजनीतिक विकल्प अभी इस देश में है भी नहीं तथा मोदी की अपूर्व राजनीतिक
दूरदर्शिता, ईमानदारी व सबका साथ सबका विकास अवधारणा के पीछे छुपी सत्यनिष्ठा के
होते हुए भविष्य में भी देश की राजनीति में किसी अन्य राजनीतिक दल के टिकने की
कोई संभावना नहीं बची।
प्राय:
इस देश के लोगों को वर्षों से राजनीतिक भ्रष्टाचार, दुराचार तथा
अत्याचार झेलते रहने के कारण सब कुछ भूलने की आदत रही है। इस दुखांत त्रासदी में
लोगों ने इतने वर्षों से भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी राष्ट्रीय राजनीति के
कर्ताधर्ताओं से उनकी राजनीतिक गंदगी का हिसाब पूछना ही बंद कर दिया था। वह हिसाब
भी क्या पूछती! वर्षों की राजनीतिक अवैध गतिविधियां यदि
उंगलियों में गिने जाने योग्य होतीं या घपलों-घोटालों का हिसाब आम आदमी को याद
रहने लायक गिनती के इर्द-गिर्द ठहरता तो लोग नेताओं से कुछ पूछते न। लेकिन लोगों
की नजर में सन 2014 से पहले तक का राष्ट्रीय शासन-तंत्र लोगों पर लोकतंत्र की
धारणा के नाम पर एकाधिकार के घिनौने स्तर तक जा पहुंचा था।
2014 में इस तरह
के राजनीतिक शासन को उखाड़ लोगों ने अभूतपूर्व कार्य किया। परंतु दुखद है कि देश
में मीडिया ने इस अभूतपूर्व घटनाक्रम की प्रशंसा नहीं करी। प्रशंसा इसलिए नहीं हुई
क्योंकि विजयी राजनीतिक दल दक्षिणपंथ का पैरोकार था तथा वैचारिक कुंठाओं से
आक्रांत वामपंथ मीडिया को यह कैसे रास आ सकता था। यदि मीडिया को भ्रष्ट बनाने वाले कांग्रेस
जैसे राजनीतिक दल ऐसे ऐतिहासिक बहुमत से विजयी होते तो निस्संदेह यही मीडिया उनके
पांच वर्षीय कार्यकाल तक उनकी इस उपलब्धि को विशेष रूप से प्रसारित करता रहता।
परंतु दशकों के सत्ता तंत्र के तले जो मीडिया इस देश में पनपा वास्तव में उसका
अधिकांश वामपंथ का विद्रूप था। इस पत्रकारीय विद्रूप ने केवल पत्रकारिता को ही
नहीं अपितु अखिल भारतीय शिक्षण-व्यवस्था, कला-साहित्य-संगीत की पुरातन भारतीय स्थापनाओं,
सांस्कृतिक-सामाजिक विरासतों तथा राजनीति की मौलिक लोकतांत्रिक दृष्टि को भी
कलंकित किया। इसका भ्रष्ट हस्तक्षेप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इस सीमा तक
बढ़ा कि जन-जन के विचारों में लोकतंत्र की धारणा कलुषित हो गई। लोग मात्र भय और
जीविका के लिए लोकतंत्र को बाहरी मन से स्वीकार करने लगे।
आज नरेंद्र मोदी
के नेतृत्व में भाजपा सरकार विगत साढ़े छह दशकों की राजनीतिक पंगुता, लोकतांत्रिक
असभ्यता को मिटाने का प्रशंसनीय कार्य कर रही है। परंतु खेद कि इस बारे में
मीडिया निष्पक्ष रूप से विस्तार से कुछ नहीं कहता। विकास के रूप में यदि वर्तमान
शासन-तंत्र ने कुछ अतिशयोक्तिपूर्ण कार्य नहीं भी किए लेकिन पिछली सरकारों की
तुलना में ये कार्य अत्यंत सराहनीय हैं। फिर वर्तमान सरकार के दो वर्षों के
विकास कार्यों को देखकर विरोधियों द्वारा यह अपेक्षा कर लेना कि यह जनता की हर
समस्या का समाधान हो, तो ऐसा तो कम से कम इस भौतिक युग में बिना किसी चमत्कार के
हो नहीं सकता।
यदि पहले की
सरकारों ने वर्ष दर वर्ष सत्तारूढ़ होने के दौरान विकास की योजनाओं का समुचित
क्रमिक क्रियान्वयन किया होता तो निश्चित रूप से उनके पास वर्तमान सरकार से अपनी
विकास छवि के बाबत तुलना करने का कोई नैतिक आधार होता। परंतु वास्तविकता यही है
कि केंद्रीय स्तर पर विगत सरकारों ने राष्ट्रीय महत्व का कोई विशेष कार्य नहीं
किया। जो कुछ भी इन्होंने किया वह पूर्णरूपेण अनियोजित, अवैध लाभार्जन के लालच से
परिचालित तथा सर्वथा अयोग्य राजनेताओं की दिमागी उपज था।
आज वर्तमान सरकार
के पास जनता के विकास के लिए अनेक योजनाएं हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन के
प्रामाणिक अभिलेख हैं। विकास कार्यों को संचालित करने में किसी तरह के भ्रष्टाचार,
घपले-घोटाले या अवैध मुद्रा लेन-देन की कोई आशंका नहीं। प्रत्येक कार्य निष्पादन
प्रणाली पूर्णत: पारदर्शी है। कृषकों, सैन्यकर्मियों,
श्रमिकों, निर्धनों, स्त्रियों, विकलांगों, भूतपूर्व सैन्यकर्मियों, युवाओं तथा
आम जनता के लिए वर्तमान सरकार ने अनेक ऐसी कल्याणकारी योजनाएं बनाई व संचालित की
हैं, जिनसे लोग बिना किसी जटिलता के सहज लाभान्वित हो रहे हैं। मोदी के रूप में इस
देश को ऐसा जननायक उपलब्ध हुआ जो अपनी शासकीय नीतियों को मानवीय संवेदना के आधार
पर निर्धारित करता है। यदि वर्तमान केंद्र सरकार राजनीतिक शुचिता के साथ ऐसे ही
कार्य करती रही तो भारत में विकास जनभागीदारी के साथ शीघ्र ही व्यावहारिक स्वरूप
ग्रहण करने लगेगा। बहुत संभव है कि इसके बाद मोदी के विरोधियों के पास उनके
राजनीतिक विरोध का कोई तरीका नहीं बचे।
इतना कुछ होने के
बाद भी अपनी सरकार की विभिन्न योजनाओं, योजनाओं के लाभों के संवितरण तथा इनके
पारदर्शी क्रियान्वयन के बारे में प्रधानमंत्री को अपने भाषणों में स्वयं बताना
पड़ता है, बारंबार जनता को याद दिलाना पड़ता है। इससे ज्ञात होता है कि देश का
मीडिया कितना पक्षपाती हो गया। सरकारी कामकाज के पारदर्शी संचालन तथा ठोस क्रियान्वयन
से देश की गरीब जनता को होनेवाले फायदे मीडिया को नहीं दिखाई देते। चूंकि देश में
मीडिया को वामपंथी विचार की स्थापना करनी है और इस हेतु उसे स्वयं का ढंग से इस्तेमाल
करने के लिए शासकीय छत्रछाया की भी जरूरत है, जो उसे दक्षिणपंथी कही जानेवाली मोदी
सरकार से मिल नहीं रही। इसलिए मीडिया लाइन सरकार की अनेक लोक-कल्याणकारी, मानवीय
संवेदनाओं पर आधारित योजनाओं के बारे में तटस्थ होकर बताने को राजी नहीं। केंद्र
की अनेक विकास योजनाओं का लाभ गैर-भाजपाई राज्यों की जनता तक इसलिए भी नहीं पहुंच
पाता, क्योंकि गैर-भाजपाई सरकारें केवल भाजपा विरोध की राजनीति करने पर ही उतारू
हैं। ऐसी सरकारें परंपरागत राजनीतिक द्वेष व प्रतिस्पर्धा की गंदी आदत के कारण
भाजपा से केवल वोट हथियाने की प्रतिस्पर्द्धा तक ही सीमित रहना चाहती हैं। इन
परिस्थितियों में जैसे-जैसे लोग देश-समाज के बाबत स्वाध्ययन कर अपने स्वतंत्र
विचार बनाएंगे वैसे-वैसे भाजपा अपने सुशासन व विकास मंत्र के बूते उनके लिए
प्रासंगिक होती जाएगी और कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दल संभवत: अस्तित्व के संघर्ष के लिए भी न बचें।
विकेश कुमार बडोला